Lokoktiyan in Hindi - हिंदी लोकोक्तियाँ

लोकोक्ति शब्द का अर्थ है-लोक की उक्ति अथवा लोक में प्रचलित कथन। अर्थात् जो कथन या उक्ति लोक में बहुत प्रसिद्ध अथवा प्रचलित हो जाए वह लोकोक्ति कहलाती है। लोकजीवन में तरह-तरह के अनुभव, नीतियां एवं आचार- व्यवहार सम्बन्धी बातें निहित रहती हैं। यही बातें कालान्तर में लोकोक्ति का रूप धारण कर लेती हैं। इन लोकोक्तियों का प्रयोग आमतौर पर बोलचाल में किसी विषय को स्पष्ट करने के लिए होता है। किसी भी कथन को सजीव, सार्थक एवं रोचक बनाने में लोकोक्ति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

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यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण हिंदी लोकोक्तियों की सूची दी जा रही है

  1. अन्धेर नगरी चौपट राजा (अधिकारी अयोग्य होने पर सब कामों में धांधली मच जाती है) : इस मिल में मालिक काम की ओर ध्यान नहीं देता एवं नौकर भी सारा दिन हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहते हैं। इसे ही कहते हैं, “अन्धेर नगरी चौपट राजा।”
  2. अन्धा क्या चाहे दो आँखें (मनचाही वस्तु बिना प्रयास मिल जाए) : उसने मुझे कुछ पैसे उधार दे दिये, तब मैं भी कह उठा, “अन्धा क्या चाहे दो आँखें।”
  3. आम के आम गुठली के दाम (एक काम से दो काम होना) : पुरानी किताबें हमारे यहाँ बेचकर अधिक दाम लीजिए। इसे कहते हैं। “आम के आम गुठली के दाम।”
  4. अशर्फियाँ लुटें, कोयले पर मोहर (बचाने के चक्कर में अधिक नष्ट करना) : कल सेठ कंजूसी मल ने अपने नौकर को खाना न दिया परन्तु उसी समय एक ठग ने उसे ठग लिया इसे कहते हैं, “अशर्फियाँ लुटे, कोयले पर मोहर।”
  5. आप सुखी जग सुखी (सुखी लोग दुखियों की अवस्था नहीं जान सकते) : मोहनलाल तो अवारागर्दी करता है और किसी के दुख से कोई वास्ता नहीं रखता, वह तो समझता है, “आप सुखी जग सुखी।” आटे के साथ घुन भी पिसता है
  6. (अपराधी के साथ निरपराधी भी फसता है) : शराबी रामलाल के साथ रहने पर मोहन भी शराबी हो गया और अपराध करने के जुर्म में पकड़ा गया। इसे कहते हैं, “आटे के साथ घुन भी पिसता है।”
  7. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध (घर में गुणी मनुष्य का मान न होना) : बाहर तो सभी गाँववाले अध्यापक जी कहकर मेरे पांव छूते हैं और घर में कोई पूछता भी नहीं, मेरी तो वही स्थिति है, “घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।”
  8. चोर का साथी गिरहकट (सभी अपने जैसे साथी को ढूंढ लेते हैं): कृष्ण पक्का बदमाश व लुटेरा था, शहर जाकर उसने अपनी ही टीम बना ली और चोरियाँ करने लगा, “चोर का साथी गिरहकट।”
  9. छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या से मन में जलन) : मेरी लाटरी का समाचार सुनकर सोहन की, “छाती पर साँप लोटने लगे।”
  10. जितने नर उतनी बुद्धि (सभी लोगों के विचार एक से नहीं मिलते : शादी के बारे में किसी के विचार नहीं लगते क्योंकि, “जितने नर उतनी बुद्धि।”
  11. जब तक साँस तब तक आस (जीवन के अंत तक आशा बनी रहती है) : तुम्हारी बीमारी का इलाज रामलाल डॉक्टर के पास सम्भव है क्योंकि, “जब तक सास तब तक आस।”
  12. जैसी करनी वैसी भरनी (कर्मों के अनुसार फल मिलता है) : गरीबों को सताने का फल तुम्हें अवश्य मिलेगा क्योंकि, “जैसी करनी वैसी भरनी।”
  13. जमात करामात (संगठन में ही शक्ति है) : मिलकर कार्य करने से सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी याद रखना, “जमात करामात।”
  14. इस हाथ दे, उस हाथ ले (दिया हुआ दान निष्फल नहीं जाता, उसका फल मिलता है) : उपकार करने से पुण्यों में इजाफा होता है और सफलता कदम चूमती है इसीलिये कहा गया है कि, “इस हाथ दे, उस हाथ ले।”
  15. इस माया के तीन नाम परसू, परसा, परसराम (ज्यों-ज्यों धन बढ़ता है, धनी व्यक्ति का नाम भी बढ़ता है) : गणेश जब से आई. ए. एस. ऑफिसर बना है, तब से सब उसके आगे पीछे घूमते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है।, “इस माया के तीन नाम परसू, परसा, परसराम।”
  16. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे (अपना अपराध स्वीकार न करके, पूछने वाले को दोषी ठहराये) : मुझे पता है कि मेरे हार को सोहन ने चुराया है, पर पूछने पर तो वह मुझे ही आँखें दिखाने लगा किसी ने ठीक कहा है।, “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।”
  17. ऊंट के मुँह में जीरा (बड़े को थोड़ी वस्तु देना) : इसका दो रोटियों से कुछ नहीं बनने वाला, यह तो इसके लिए, “ऊँट के मुँह में जीरा के समान है।”
  18. एक अनार सौ बीमार (एक वस्तु के अनेक इच्छुक) : रामलाल के अकेला रहते हुए घर में दशा अच्छी नहीं है बेचारा घर देखे या नौकरी। उसकी दशा तो, “एक अनार सौ बीमार जैसी है।”
  19. एक-एक दो ग्यारह (एकता में बल है) : अपने विरुद्ध हुए अन्याय का सभी मिलकर आवाज उठाओ, तुम्हें याद नहीं, “एक-एक दा ग्यारह होते हैं।”
  20. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है (अच्छे मनुष्य में एक बुरा आदमी सम्पूर्ण समाज को भ्रष्ट कर देता है) : बिटू के बुरे कार्यों से सारा कॉलेज लांछित हो रहा है, “एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।”
  21. एक तंदुरुस्ती हजार नियामत (स्वास्थ्य बहुत बड़ा धन है) : अपने खाने-पीने में नियम बरतो क्योंकि, “एक तंदुरुस्ती हजार नियामत।”
  22. एक हाथ से ताली नहीं बजती (लड़ाई में दोनों पक्ष कारण होते हैं) : किशन से जरूर तुमने पहले कुछ कहा होगा, इसीलिए उसने तुम्हें चांटा मारा क्योंकि, “एक हाथ से ताली नहीं बजती।”
  23. एक पंथ दो काज (एक उपाय द्वारा दो काय) : हरिद्वार जाकर पापा से भी मिल लेंगे और गंगा स्नान भी कर लेंगे इसे कहते हैं, “एक पंथ दो काज।”
  24. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर (कठिन कार्य करने में विपत्तियों को जगह नहीं) : बंजर भूमि खरीदकर इसकी उरवर्ता बढ़ाना तो तुम्हारा ही काम है और इसमें खर्चा भी खूब आएगा, “ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर।”
  25. कड़ाई से गिरा चूल्हे में पड़ा (एक आपत्ति से छूटकर दूसरी आपत्ति में पड़ना) : अभी तो वह जेल से रिहा हुआ था कि पुलिस ने चोरी के जुर्म में फिर पकड़ लिया। इसे कहते हैं, “कड़ाई से गिरा चूल्हे में पड़ा।”
  26. कोयले की दलाली में मुँह काला (दुष्टों की संगति से कलंक लगता है) : मोहन को कितनी बार समझाया, सोहन जुआरी है उसका साथ मत दें। जब पुलिस ने पकड़ लिया, तब उसकी समझ में आया कि, “कोयले की दलाली में मुँह काला।”
  27. काम काम को सिखलाता है (काम करने से ही अनुभव बढ़ता है) : संजय अभी बच्चा है, उसे अनुभव नहीं है। काम करने पर ही उसे अनुभव मिलेगा क्योंकि, “काम काम को सिखलाता है।”
  28. का वर्षा जब कृषि सुखाने (समय बीतने पर साधनों के मिलने से क्या लाभ) : शादी के लिए मुझे पैसों की सख्त आवश्यकता थी, अब इनकी कोई जरूरत नहीं है, “का वर्षा जब कृषि सुखाने।”
  29. खग जाने खग ही की भाषा (साथी-साथी का व पड़ोसी पड़ोसी का स्वभाव जानता है) : मेरा मोहन से क्या वास्ता उसे तो निहाल ही करीब से जानता है क्योंकि, “खग जाने खग ही की भाषा।”
  30. गागर में सागर भरना (विस्तृत बातों को संक्षेप में कहना) : पंकज ने दस पंक्तियों में सम्पूर्ण जीवन का मर्म भर दिया इसी को कहते हैं, “गागर में सागर भरना।”
  31. गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज (बनावटी परहेज) : तुम प्याज की पकौड़ियाँ तो खा लेते हो, पर प्याज नहीं खाते। क्या बात है भाई, “गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज।”
  32. गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुनादास (किसी सिद्धांत पर स्थिर न रहना) : रामलाल तो जब तुमसे मिलते हैं तो तुम्हारी जैसी कहते हैं और मुझसे मिलकर मेरी जैसी कहने लगते हैं वह तो एकदम, “गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुनादास।”
  33. घाट-घाट का पानी पीना (संसार का अनुभव प्राप्त करना) : तुम नत्थूलाल का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि उसने तो, “घाट-घाट का पानी पिया हुआ है।”
  34. पेट में दाढ़ी होना (अत्यधिक चालाक होना) : रामनारायण बच्चा तो है पर उसके, “पेट में दाढ़ी है।”
  35. पाँचों उंगलियाँ घी में होना (अत्यधिक लाभ होना) : तुम तो जब से डी.आई.जी. बने हो तुम्हारी तो, “पाँचों उंगलियाँ घी में हैं।”
  36. निन्यानवे के फेर में पड़ना (अत्यधिक लालच करना) : सोनू तो आजकल निन्यानवे के फेर में है, वह किसी की भी नहीं सुनता।
  37. नया नौ दिन, पुराना सौ दिन (पुरानी वस्तु ही स्थिर रहती है, नई नहीं) : नए जूते खरीदने पर, पुरानों को फेंकना मत। क्योंकि क्या तुमने कहावत नहीं सुनी, “नया नौ दिन, पुराना सौ दिन।”
  38. देखें ऊँट किस करवट बैठता है (देखना है, परिणाम क्या निकलता है) : मोहन जी आ तो गए, “देखें ऊंट किस करवट बैठता है।”
  39. दो नावों पर पैर रखना (दोनों पक्षों में रहना) : अरे या तो तुम भाजपा की मदद करो या कांग्रेस की क्योंकि, “दोनों नावों पर पैर रखना अच्छा नहीं।”
  40. द्रोपदी का चीर होना (अन्त न मिलना) : तुम्हारे आने एवं हमसे मिलने की तारीख तो, “द्रोपदी की चीर होती जा रही है।”
  41. दीवारों के भी कान होते हैं (गुप्तवार्तालाप हमेशा अकेले में करनी चाहिए) : जरा धीरे बोलो, कोई सुन लेगा क्योंकि, “दीवारों के भी कान होते हैं।”
  42. दाँतों तले उंगली दबाना (आश्चर्य प्रकट करना) : श्याम के कारनामे देखकर, “दाँतों तले उंगली दबा ली।”
  43. दिन दूना रात चौगुना (सब प्रकार से उन्नति करना) : अरे! राम की बात क्या करती हो, वह तो, “दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है।”
  44. तुरन्त दान महा कल्याण (जो काम करना हो, उसे शीघ्रकर डालो) : अगर चंदा देना है तो जल्दी दे दीजिए क्योंकि, “तुरन्त दान महा कल्याण।”
  45. तबले की बला बन्दर के सिर पर (अपराध तो कोई ओर करे, पर फंसे कोई ओर) : चोरी मैंने नहीं तुमने की है, ऊपर से मुझ पर आरोप मढ़ते हो, किसी ने ठीक कहा है, “तबले की बला बन्दर के सिर पर।”
  46. तीन लोक ते मथुरा न्यारी (जब कोई व्यक्ति निराले ढंग का होता है) : गणेश का रंग-ढंग सबसे अनोखा है, ऐसे लोगों के लिए एककहावत है, “तीन लोक ते मथुरा न्यारी।”
  47. आगे नाथ न पीछे पगहा (जब कोई बिल्कुल स्वतंत्र होता है) : अनाथ होने पर किरन ने अपनी पूरी जिंदगी शराब में डुबो दी। अब उसे किसी का भी डर नहीं। क्योंकि उसके, “आगे नाथ न पीछे पगहा।”
  48. आ बैल मुझे मार (जब कोई स्वयं विपत्ति बुलाता है) : उस पहलवान से पंगा लेकर तुमने, “आ बैल मुझे मारने वाला काम किया है।”
  49. आप काज महा काज (अपना कार्य अधिक जरूरी है) : कृष्ण पहले अपना पाठ तो पूरा करो, फिर उसे पेंटिग सिखाना क्योंकि, “आप काज महा काज।”
  50. आँख का उठना बैठना दोनों बुरे (किसी मनुष्य का प्रसन्न व अप्रसन्न होना दोनों हानिकारक) : अरे भई, ब्रजलाल विचित्र आदमी है। उसको कुछ मत कहो उसके लिये तो, “आँख का उठना बैठना दोनों बुरे।”
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